मूसा और यीशु मसीह के बीच में भविष्यद्वाणी और वास्तविकता का संबंध है।
इस्राएलियों ने रपीदीम में युद्ध जीता क्योंकि मूसा अपने हाथों को उठाए रहा।
यह एक भविष्यवाणी थी कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने पर
परमेश्वर के लोग शैतान के विरुद्ध आत्मिक युद्ध जीतेंगे।
जब इस्राएलियों को विषवाले सांपों ने डसा और उनमें से बहुत से मर गए,
तो परमेश्वर ने कहा, “एक सांप बनाओ और इसे एक खम्बे पर डालो;
सांप से डसा हुआ जो कोई भी उसे देखे, वह जीवित बचेगा।”
हालांकि, वे परमेश्वर के वचनों की शक्ति को भूल गए
जिन्होंने उन्हें बचाया और 800 वर्षों के बाद भी पीतल के सांप की पूजा की।
परिणामस्वरूप, उन्होंने परमेश्वर के क्रोध को भड़काया।
यह एक छाया थी जो दिखाती थी कि आज लोग नई वाचा को भूल कर जो मसीह ने अपने बलिदान के द्वारा स्थापित की थी, क्रूस की पूजा करके नष्ट हो जाएँगे।
यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है कि हम क्रूस खड़ा करें।
प्रथम ईसाइयों के लिए, क्रूस कुछ भी नहीं
लेकिन एक शापित वृक्ष था जिस पर यीशु को चढ़ाया गया था।
‘शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्ति कारीगर से खुदवाकर
या ढलवाकर निराले स्थान में स्थापन करे, क्योंकि इससे
यहोवा घृणा करता है।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
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